हिंदी साहित्य का आधुनिक काल
पूर्वाभास :-
इस युग से पहले गद्य का उल्लेख और महत्व गिने जाने योग्य नहीं था। आधुनिक काल में फिर इसका महत्व बढ़ गया। गद्य का संबंध वैचारिकता ( ideaology ) से है।
आधुनिकता काल में गद्य में ही नहीं , पद्य में भी व्यक्त हुई है। भारतेंदु युग के बाद कविता पर गद्यात्मक दबाव है। आजकल की जो कविता की भाषा लगभग गद्य हो गई है। भारतेंदु युग से ही गद्यात्मकता का प्रारंभ हो गया था। आधुनिक युग / काल में निबंध , उपन्यास , कहानी ,रेखाचित्र , आलोचना , नाटक आदि गद्य की विधाएँ ( प्रकार) हैं। जो आधुनिक काल से पहले युग रीतिकाल में रीति , लय , संगीतात्मकता इत्यादि पर ध्यान हैं ।
खड़ी बोली गद्य का विकास :-
मुगल शासन काल के आखिरी दौर में खड़ी बोली गद्य को फ़ारसी रंग में ढालने का प्रयास हुआ और यह स्वाभाविक था। सामान्य से ऊपर उठा हुआ और उठने की इच्छ रखने वाला व्यक्ति या समुदाय जीवन के अनेक क्षेत्रो में उच्च वर्ग की नकल करता है। भाषा से सामाजिक स्थिति को प्रकट करने का काम लिया जाता है। जैसे आजकल लोग बोलते समय बीच -बीच में अंग्रेज़ी शब्दों या वाक्यों का उपयोग या व्यवहार करता है। वैसे ही मुगल काल में लोग फ़ारसी का करते होंगे। इससे खड़ी बोली की देशी शैली के साथ साथ काम करनेवाला या चलनेवाला फ़ारसी शब्दावली वाली उर्दू का जन्म हुआ। उर्दू शैली का विकास सांस्कृतिक एव प्रशासनिक था , ना कि धार्मिक ।
फोर्ट विलियम कॉलेज :-
1 1803 में फोर्ट विलियम कॉलेज , कलकता
2 इस कालेज के हिंदी उर्दू अध्यापक जॉन गिलक्राइस्ट
3 अध्यापक ने हिंदी व उर्दू , दोनों में गद्य पुस्तके तैयार की।
4 लल्लूलाल (फोर्ट विलियम कॉलेज , कलकता ) ---- प्रेमसागर ( खड़ी बोली गद्य) ।
5 सदल मिश्र (फोर्ट विलियम कॉलेज , कलकता ) -- नासिकेतोपाख्यान ( खड़ी बोली)।
6. दो वर्ष पूर्व -
मुंशी सदासुखलाल - - - - ज्ञानोपदेश
इंशाअल्ला खाँ - - - - रानी केतकी की कहानी
ये तीनों आधुनिक खडी बोली के प्रारंभिक लेखक माने है ।
मुंशी सदासुखलाल 'नियाज़ ' (1746 - 1824 )
- यह दिल्ली के रहने वाले थे ।
- उर्दू फारसी के भी लेखक थे ।
- इन्होंने सुखसागर और एक ज्ञानोपदेश वाली पुस्तक लिखी ।
- जिस की भाषा एकदम सहज और प्रभावमयी है ।
- इनकी खड़ी बोली के गद्य पर कथावाचको तथा पंडितों की शैली का प्रभाव है ।
- इनकी भाषा की सहजता नष्ट नहीं हुई ।
इंशाअल्ला खाँ (1756 - 1817 )
- यह उर्दू के प्रसिद्ध कवि थे ।
- इन्होंने उदयभान चरित या रानी केतकी की कहानी लिखी ।
- इनकी भाषा चटकीली और मुहावरेदार है ।
- उन दिनों किस्सागोई की कला काफी प्रचलित थी ।
लल्लूलाल जी (1763 - 1825 )
- लल्लूलाल ने खड़ी बोली गद्य में प्रेमसागर लिखा ।
- अरबी - फारसी के शब्दों का उन्होंने अपने गद्य में बहिष्कार किया ।
- भाषा की सजावट प्रेमसागर में पूरी हुई।
- मुहावरो का प्रयोग कम है ।
- विरामों पर तुकबंदी के अतिरिक्त वर्णनों में वाक्य भी बड़े बड़े आए है और अनुप्रास भी यत्र -तत्र है ।
सदल मिश्र ( 19 वीं शती का प्रारंभ )
- इन्होंने फोर्ट विलयम कॉलेज के लिए खड़ी बोली के लिए गद्य पुस्तकें लिखी ।
- पुस्तक का नाम - नासिकेतोपख्यान ।
- भाषा- पूरबीपन
- आरा (बिहार) के रहने वाले है ।
- रामप्रसाद निरंजनी - भाषा योग वरिष्ठ की ही परंपरा में उनका गद्य है ।
- 1833 के आसपास आगरा में स्कूल बुक सोसाइटी ' की स्थापना हुई , जिसने कथासार नामक पुस्तक प्रकाशित कराई ।
- कथासार मार्शमैन के प्राचीन इतिहास * का अनुवाद था ।
- 1840 में भूगोलसार और 1847 में रसायन प्रकाश छपा । इस तरह हिंदी गद्य में पाठ्यपुस्तकों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ ।
- ईसाई धर्म के प्रचार का प्रभाव हिंदू जनता पर पड़ रहा था । ऐसी स्थिति में हिंदू जनता को उस प्रभाव से बचाने का उद्यम होना अनिवार्य था । इस तरह हिंदी गद्य में धार्मिक खंडन - मंडन की प्रवृत्ति का प्रारंभ हुआ ।
- बंगाल में राजा राममोहन राय इस कार्य में आगे बढ़े । 1815 में उन्होंने वेदांतसूत्र का हिंदी गद्य में अनुवाद प्रकाशित कराया ।
- 1829 में उन्होंने हिंदी में बंगदूत नामक पत्र निकाला ।
- इसके 3 वर्ष पहले 1826 में कानपुर के पं . जुगुल किशोर ने हिंदी का पहला समाचार पत्र उदंतमार्त्तंड कलकत्ता ( कोलकाता ) से निकाला ।
- देशभक्त समाज - सुधारक ने हिंदी गद्य का अखिल भारतीय महत्व समझा ।
- 1845 - राजा शिवप्रसाद 'सितारेहिंद ' - काशी से बनारस अखबार निकला ।
- लिपि - देवनागरी , पर उर्दू की ओर झुकी हुई।
- 1850- बनारस से सुधाकर निकला ।
- राजा लक्ष्मणसिंह - 1860 - आगरा से प्रजा हितैषी नामक पत्र निकला
- 1863 - आगरा से लोकमित्र निकला।
- 1867- नवीन चंद्र - ज्ञान प्रदायिनी पात्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
- 1837 - संयुक्त प्रांत (अब UP) के सब दफ्तरों की भाषा उर्दू कर दी गई।
- इसका प्रभाव यह पड़ा कि शिक्षित होने का अर्थ हो गया उर्दूदाँ होना।
- हिन्दी सिर्फ धर्म-कथा, पुराण आदि को सुनने सुनाने और स्रियों के लिए व्रत कथा , त्योहार तक सीमित रह गया।
- उर्दू के समर्थन - गार्सा द तासी और सर सैयद अहमद ।
- हिन्दी के उद्योग करने वालों में फ्रेडरिक पिन्कॉट का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा।
- राजा शिवराज ' सितारेहिंद ' पहले हिंदी के समर्थन में थे फिर उर्दू के हिमायती हो गए ।
- राजा लक्ष्मण सिंह -शकुंतलम् और रघुवंशम् का अनुवाद किया।
- पं . श्रद्धाराम फुल्लोरी -1863 के आसपास अपने पांडित्य पूर्ण एवं निर्भीक व्याख्यानो और लेखों से हिन्दी को बहुत सहारा दिया ।
- पं . श्रद्धाराम फुल्लोरी - भाग्यवती ( 1867) - पहला हिन्दी उपन्यास |
स्वामी दयानंद सरस्वती ( 19वी शती)
- 1875 आर्यसमाज की स्थापना की ।
- वे वैदिक धर्म का प्रचार करते थे ।
- प्रसिद्ध ग्रंथ - सत्यार्थप्रकाश ।
- वह गुजराती भाषा थे।