महाकवि भास की कृतियां
महाकवि भास की कृतियाँ:-
बीसवीं सदी के आरम्भ तक भास नाटकचक्र के बारे में केवल यत्र - तत्र प्रशस्ति वाक्य सुनने को मिलते थे । भास के नाटकों का स्वरूप लोगों को ज्ञात नहीं था । केवल दक्षिण भारत की कुछ हस्तप्रतियों में ही भास नाटकचक्र सीमित था । यद्यपि पूर्व संस्कृत के आचार्यों तथा कवियों ने भास तथा उनके नाटकों की बहुशः प्रशंसा की थी तथापि उनकी कोई भी कृति उपलब्ध नहीं हुई थी । स्वयं महाकवि कालिदास ने मालविकाग्निमित्रम् नाटक के आरम्भ में सूत्रधार के मुख से प्रश्न करवाया है कि ' प्रसिद्ध यश वाले भास , सौमिल्ल , कविपुत्र आदि कवियों की कृतियों का अतिक्रमण कर कालिदास की कृति का अत्यधिक आदर क्यों है ? ' इससे स्पष्ट है कि अतिप्राचीन काल से इनके नाटक अपना विशिष्ट स्थान रखते थे तथा मान्य कवियों की दृष्टि में सम्मानित थे । सर्वप्रथम महामहोपाध्याय टी . गणपति शास्त्री ही उन्नीसवीं शताब्दी में भास के नाटकों को प्रकाश में लाए ।
सन् 1912 ई ० में टी . गणपति शास्त्री जी ने त्रिवेन्द्रम् से भास के 13 नाटकों का संग्रह प्रकाशित किया , जो इस प्रकार हैं -
1.रामकथाश्रित ( 2 ) -प्रतिमानाटकम् , अभिषेकनाटकम् पंचरात्रम् , मध्यमव्यायोग , दूतघटोत्कचम् ,
2. महाभारताश्रित ( 6 ) -कर्णभारम् , दूतवाक्यम् और ऊरुभंगम्
3. भागवत्ताश्रित अथवा कृष्णकथाश्रित ( 1 )- बालचरितम्
4. लोककथाश्रित ( 2 ) -चारुदत्तम् , अविमारकम्
5. उदयनकथाश्रित ( 2 ) -प्रतिज्ञायौगन्धरायणम् , स्वप्रवासवदत्तम्
इन रूपकों का संक्षिप्त परिचय क्रमानुसार प्रस्तुत है -
1. प्रतिमानाटकम् -
सात अंकों में निबद्ध इस नाटक की कथावस्तु रामायण से ली गयी है । राम के राज्याभिषेक स्थगित होने से लेकर रावणवध तक की घटनाओं का वर्णन इस नाटक में किया गया है । इस नाटक से प्राचीन भारत के कलाविषयक वृत्तान्त का बोध होता है । प्राचीनकाल में राजाओं के देवकुल होते थे , जिनमें मृत्यूपरान्त राजाओं की प्रतिमाएं स्थापित की जाती थी । इक्ष्वाकुवंश का भी ऐसा ही देवकुल था , जिसमें मृतनरेशों की मूर्तियाँ स्थापित की गई थी । कैकेय देश से आते समय अयोध्या के समीप देवकुल में स्थापित दशरथ की प्रतिमा को देखकर ही भरत ने उनकी मृत्यु का अनुमान अपने आप कर लिया । इसी कारण प्रस्तुत नाटक का नाम प्रतिमानाटक है । भ्रातृ - प्रेम एवं पितृ - प्रेम का स्तुत्य वर्णन इस नाटक में प्राप्त होता है ।
2. अभिषेकनाटकम् -
इस नाटक में छः अंक हैं । इसकी कथावस्तु रामायण पर आधारित है । नाटक की कथा किष्किन्धा पहुँचने से प्रारम्भ होती है । बालिबध से लेकर रावणवध तक की कथा का निदर्शन भास ने इस नाटक में किया है । राम के राज्याभिषेक के साथ ही नाटक का पटाक्षेप होता है ।
3. पंचरात्रम् -
महाभारत की एक घटना पर आधारित इस नाटक को भास ने अपनी कल्पना से परिवर्तित कर दिया है इस नाटक में तीन अंक हैं । इस नाटक में द्रोणाचार्य दुर्योधन से पाण्डवों को आधा राज्य देने के लिये कहते हैं । दुर्योधन इस शर्त पर राज्य देने के लिए तैयार होता है कि पाँच रात्रि की अवधि में अज्ञातवास में स्थित पाण्डव यदि मिल जायेंगे तो मैं उन्हें आधा राज्य दे दूंगा । द्रोण के प्रयत्न करने पर पाण्डव मिल जाते हैं और दुर्योधन उन्हें आधा राज्य दे देता है ।
4. मध्यमव्यायोग-
इस एकांकी की कथावस्तु भी किञ्चित् परिवर्तन के साथ महाभारत से ली गयी है मध्यम पाण्डव भीम द्वारा घटोत्कच से ब्राह्मण के मध्यम पुत्र की मुक्ति की कथा का निदर्शन इस नाटक में हुआ है । मध्यम शब्द भीम और ब्राह्मणबालक दोनों का बोधक है , जिसके कारण नाटक का नाम मध्यमव्यायोग रखा गया है ।
5. दूतघटोत्कचम् -
यह नाटक भी महाभारत से प्रेरित है । अभिमन्यु की मृत्यु के पश्चात् अर्जुन जयद्रथ के वध करने की प्रतिज्ञा करते हैं । घटोत्कच दूत बनकर कृष्ण का संदेश धृतराष्ट्र के पास ले जाता है । दुर्योधन द्वारा घटोत्कच को अपमानित किए जाने पर घटोत्कच दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारता है । दोनों पक्षों में युद्ध प्रारम्भ हो जाता है । अन्त में अभिमन्यु की हत्या का बदला लेने की धमकी देकर घटोत्कच चला जाता है । इस नाटक में भरतवाक्य नहीं है ।
6. कर्णभारम् -
इस एकांकी में द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात् कौरवों की ओर से कर्ण को सेनापति नियुक्त किए जाने पर युद्ध का सारा भार कर्ण पर आ जाता है । इसीलिए नाटक का नाम कर्णभारम् रखा गया है । इन्द्र ब्राह्मण का रूप धारण कर कर्ण से उसका कवच माँगते हैं । कर्ण ब्राह्मणवेषधारी इन्द्र को कवच और कुण्डल दान में दे देते हैं ।
7. दूतवाक्यम् -
महाभारत से लिया गया दूतवाक्य एक अंक का ब्यायोग है । श्रीकृष्ण पाण्डव पक्ष से दुर्योधन के पास दूत बनकर जाते हैं । दुर्योधन श्रीकृष्ण के सम्मान में किसी को भी अपने स्थान से खड़ा न होने का आदेश देता है । दुर्योधन यहीं नहीं रुकता अपितु वह स्वयं श्रीकृष्ण को अपमानित करने के लिए द्रौपदी के चीरहरण के चित्र की ओर देखता है । श्रीकृष्ण द्वारा पाण्डवों के लिए राज्य का आधा भाग माँगने पर दुर्योधन अपने सैनिकों को कृष्ण को बन्दी बनाने की आज्ञा देता है , किन्तु कृष्ण के विराटरूप प्रदर्शित करने पर वह डर जाता है । दौत्य - कर्म में विफल होकर श्रीकृष्ण वापस लौट जाते हैं।
8. उरुभङ्गम् -
इसकी कथावस्तु भी महाभारत से ली गयी है । करुण रस से ओत - प्रोत संस्कृत साहित्य में यही एकमात्र दुःखान्त नाटक है । इस एकांकी नाटक में भीम एवं दुर्योधन के गदा युद्ध का वर्णन है । द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए भीम श्रीकृष्ण का संकेत पाकर दुर्योधन की जंघा पर प्रहार कर तोड़ देते हैं । दुर्योधन के माता - पिता विलाप करने लगते हैं । अश्वत्थामा पाण्डवों का संहार करने की प्रतिज्ञा करते हैं । अन्त में दुर्योधन की मृत्यु हो जाती है ।
9. बालचरितम् -
इस नाटक की कथावस्तु महाभारत , भागवतपुराण , हरिवंशपुराण तथा विष्णुपुराण पर आधारित है । पाँच अंकों में विभक्त इस नाटक में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन है , जिसमें जन्म से लेकर कंसवध तक की कथा वर्णित है ।
10. चारुदत्तम् -
कल्पनामूलक यह नाटक चार अंकों में विभक्त है । इस नाटक का आधार तत्कालीन प्रचलित लोककथा प्रतीत होती है । इसमें धनहीन चरित्रसम्पन्न ब्राह्मण चारुदत्त तथा गुणग्राहिणी वेश्या वसन्तसेना का आदर्श प्रेम वर्णित है । महाकवि भास की नाट्य - श्रृंखला में ' चारुदत्तम् ' अन्तिम नाटक माना जाता है । यह नाटक अचानक ही समाप्त हो जाता है , अतः यह अपूर्ण ही है । महाकवि शूद्रक द्वारा प्रणीत मृच्छकटिकम् ' नामक प्रकरण का आधार भास का यही नाटक माना जाता है ।
11. अविमारकम् -
छः अंकों में निबद्ध अविमारकम् भी कल्पनामूलक नाटक है । इसके कथानक का संकेत कामसूत्र में प्राप्त होता है । इसमें अविमारक तथा राजा कुन्तीभोज की पुत्री कुरंगी के प्रेम का वर्णन किया गया है । सौवीर राजा के पुत्र विष्णुसेन का ही दूसरा नाम ' अविमारक है । अवि अर्थात् भेड़ रूपधारी असुर को मारने के कारण इसका नाम ' अविमारक ' पड़ा । नाटक में प्रणय का आकर्षक तथा सरस चित्रण किया गया है ।
12. प्रतिज्ञायौगन्धरायणम् -
लोककथाओं पर आश्रित इस नाटक में चार अंक हैं । आखेटप्रेमी राजा उदयन को कृत्रिम हाथी के छल से उज्जयिनीनरेश पकड़ लेता है । उदयन के मन्त्री यौगन्धरायण ने प्रतिज्ञा की थी कि वह राजा उदयन को राजा प्रद्योत के बन्धन से मुक्त करवाएगा तथा उनका विवाह राजकुमारी वासवदत्ता से करवाएगा । मंत्री यौगन्धरायण अपनी प्रतिज्ञा पूरी करता है । मंत्री की दृढ़प्रतिज्ञा तथा कुटिलनीति की सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति भास ने की है ।
13. स्वप्रवासवदत्तम् -
भास द्वारा प्रणीत नाटकों में यह सर्वश्रेष्ठ नाटक है । इसे प्रतिज्ञायौगन्धरायण का उत्तरार्द्ध अर्थात् परवर्ती भाग कहा जा सकता है । उदयन का अपने विरोधियों को परास्त करने के लिए मगधराज दर्शक की सहायता लेना नितान्त आवश्यक हो जाता है । ऐसे में पद्मावती से उदयन का विवाह करवाने के लिए यौगन्धरायण वासवदत्ता के आग में जल जाने की झूठी खबर फैलाता है और वासवदत्ता को मगधराज दर्शक बहन पद्मावती के पास वेश बदलकर रखवा लेता है । तत्पश्चात् पद्मावती एवं उदयन का विवाह हो जाता है । मगधराज आदि की सहायता से राजा उदयन कौशाम्बी का नष्ट राज्य प्राप्त करने में सफल हो जाता है । स्वप्न में राजा उदयन वासवदत्ता को देखता है । उसे वासवदत्ता के जीवित होने में कुछ विश्वास जगने लगता है । विजयोपरान्त राजा उदयन के सम्मुख वासवदत्ता लाई जाती है और दोनों का पुनः मिलन हो जाता है इसमें भास ने अपनी नाट्यकला का अद्भुत चित्रण किया है ।
महाकवि भासकृत प्रतिमानाटकम् का सामान्य परिचय
महाकवि भास का स्वप्नवासवदत्त का प्रथम अंक/ अंश की व्याख्या के साथ महत्वपूर्ण अंश
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