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प्रतिमानाटक महाकवि भास की रचना एवं कृति

 भूमिका
प्रतिमानाटक का मूल आधार


प्रतिमा नाटक की कथा रामायण पर आधारित है, विशेषतः अयोध्या और परण्यकाण्ड की घटनाओं पर फिर भी रामायण से इसमें निम्नलिखित भेद हैं-

(१) रामायण के विरुद्ध इसमें लक्ष्मण को भरत से श्रेष्ठ बताया गया है, जो पुराण के अनुसार है।

(२) तीसरे अंक में देवकुलिक द्वारा बताया गया वंशक्रम- दिलीप, रघु, प्रज, दशरथ भी हरिवंश धर पद्मपुराण (पातालखंड) के अनुसार है। रघुवंश में कालिदास ने भी यही क्रम अपनाया है। किन्तु रामायण में यह क्रम नहीं है (देखिए अयोध्याकांड - अध्याय ११० ) । (३) प्रतिमागृह में भरत को दशरथ की मृत्यु का समाचार ज्ञात हुआ,

यह बात भी किसी पुराण के अनुसार होगी, पर रामायण में नहीं है । वहाँ तो कक्ष में दशरथ को न देखकर ही भरत पाशंकित हो गए और पश्चात् सब बातें कैकेयी से मालूम की !

(४) छठे अंक में सुमन्त्र से सीतापहरण का समाचार जानकर राम की सहायता के लिए भरत का प्रस्थान करना भी रामायण के विरुद्ध है मालूम पड़ता है, नाटक को कारुणिक बनाने के लिए कवि ने ऐसी कल्पना की है। कामपार्श्वमृग का प्रकरण भी कविकल्पना प्रसूत ही है।

(५) राम का भरत से राज्य ग्रहण करना और उनका वन में राज्या- भिषेक होना भी कवि की अपनी कल्पना है। फिर वल्कल की घटना, राज्याभिषेक के समय शत्रुन का उपस्थित हो जाना और दूसरे अंक में दशरथ द्वारा अपने पूर्व पुरुषों को देखना प्रादि कतिपय बातें कवि ने नाटकी- यता की दृष्टि से कथा में जोड़ डाली हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि रामायण, पद्मपुराण और कमि की

अपनी कल्पना भी इस नाटक के स्रोत हैं।


प्रतिमा नाटक की संक्षिप्त कथा:-

राम-राज्याभिषेक के समय कैकेपी की दासी महाराज दशरथ के कान में कुछ कहती है, जिससे राज्याभिषेक स्थगित हो जाता है और १४ वर्ष के लिए राम, सीता तथा लक्ष्मण को वन में जाना पड़ता है। राम के वियोग में दशरथ की मृत्यु हो जाती है। जब भरत ननिहाल से लौटते हैं तब एक प्रतिमाह में अपने मृत पूर्वजों की प्रतिमा के साथ दशरथ की प्रतिमा देख- कर समझ लेते हैं कि उनके पिता अब जीवित नहीं है। इसीके आधार पर इस नाटक का नाम प्रतिमा पड़ा है। तब भरत राम से मिलने के लिए बन को चल देते हैं। परन्तु वहाँ राम के बहुत समझाने-बुझाने पर भरत राम की पादुकाएं लेकर प्रयोध्या सीट प्राते हैं। इधर सीताहरण के लिए रावण अतिथि बनकर जनस्थान में माता है। राम और सीता दोनों उससे मिलते हैं। राम पितृषाद के लिए रावण के कथनानुसार कान के पीछे पढ़ते हैं। इस बीच लक्ष्मण ऋषियों का स्वागत करने चले गए थे। 

रावण सीता को पुष्पक पर हर मे जाता है। सीताहरण के पश्चात् राम जन- स्थान छोड़ देते हैं और सुमन्त्र जब उन्हें देखने जाता है तो सीताहरण की बात उसे जात होती है। वह लौटकर सारा वृत्तान्त भरत से कहता है। उस अवसर पर भरत पौर कैकेयी की बातचीत से ज्ञात होता है कि सन्ध मुनि के शाप के कारण कैकेयी को निमित्त बनना पड़ा। वह केवल १४ दिनों का बनवास मांगना चाहती थी; पर देवी प्रेरणा से जीभ १४ वर्ष कह गई। तब भरत सेना सहित जनस्थान जाते हैं। तब तक राम भी रावण-विजय के पश्चात् लौटते हुए जनस्थान को पुनः देखने के लिए विमान से उतरते हैं । जनस्थान में इसी मिलन के अवसर पर राम का अभिषेक हो जाता है ।

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