Chapter - Real Number
Exercise - 1.2
प्रश्न 1. सिद्ध कीजिए कि √5 एक अपरिमेय संख्या है।
उत्तर 1: माना कि √5 एक परिमेय संख्या है।
इसलिए, माना
√5 = a , b≠0
b
b
जहाँ a और b पूर्णांक हैं तथा a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है।
a = √5b
a²=5b²..........(1)
अतः, 5, a² को विभाजित करता है।
इसलिए, 5, a को विभाजित करेगा। ........(2)
अब, माना, a = 5k, जहाँ k कोई पूर्णांक है।
समीकरण (1) में a मान रखने पर,
(5k)² = 5b²
25k² = 5b²
5k² = b²
अतः, 5, b² को विभाजित करता है।
इसलिए, 5, b को विभाजित करेगा। ........(3)
इसप्रकार, समीकरण (2) और (3) से, हमें यह पता चलता है कि a और b का उभयनिष्ठ गुणनखंड 5 है। जो हमारी कल्पना (a और 5 में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है) के विपरीत है।
यह विरोधाभास हमारी त्रुटिपूर्ण कल्पना के कारण हुआ है कि 5 एक परिमेय संख्या है।
अतः, √5 एक अपरिमेय संख्या है।
प्रश्न 2. सिद्ध कीजिए कि 3 + 2√5 एक अपरिमेय संख्या है।
उत्तर 2: माना कि 3 + 2√5 एक परिमेय संख्या है। इसलिए, माना
3+2√5 = a , b≠0
b
जहाँ a और b पूर्णांक हैं तथा a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है।

क्योंकि a और b पूर्णांक हैं, इसलिए 1/2 ( a/b-3) एक परिमेय संख्या है। इसलिए, √5 भी एक परिमेय संख्या होगी।
परन्तु हम जानते हैं कि √5 एक अपरिमेय संख्या है।
यह विरोधाभास हमारी त्रुटिपूर्ण कल्पना के कारण हुआ है कि 3 + 2√5 एक परिमेय संख्या है। अतः, 3+ 2√5 एक अपरिमेय संख्या है।
प्रश्न 3. सिद्ध कीजिए कि निम्नलिखित संख्याएँ अपरिमेय हैं:
(1) 1/√2
(ii) 7√5
(iii) 6+ √2
उत्तर 3: (1) माना कि 1/√2 एक परिमेय संख्या है।
इसलिए, माना
1/√2 = a/b , b≠0
जहाँ a और b पूर्णांक हैं तथा a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है।
1/√2 = a/b
√2 = a/b
2a² = b² ...........(1)
अतः, 2, b² को विभाजित करता है।
इसलिए, 2, b को विभाजित करेगा। .........(2)
अब, माना, b = 2k, जहाँ k कोई पूर्णांक है।
समीकरण (1) में b मान रखने पर,
(2k)² = 2a²
4k² = 2a²
2k² = a²
अतः, 2, a² को विभाजित करता है।
इसलिए, 2, a को विभाजित करेगा।.......(3)
इसप्रकार, समीकरण (2) और (3) से, हमें यह पता चलता है कि a और b का उभयनिष्ठ गुणनखंड 2 है। जो हमारी कल्पना (a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है) के विपरीत है।
यह विरोधाभास हमारी त्रुटिपूर्ण कल्पना के कारण हुआ है कि एक परिमेय संख्या है। अतः, एक अपरिमेय संख्या है।
(ii) 7√5
माना कि 7√5 एक परिमेय संख्या है।
इसलिए, माना
7√5=a/b, b≠0
जहाँ a और b पूर्णांक हैं तथा a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है।
7√5= a/b
√5=a/7b
क्योंकि a और b पूर्णांक हैं, इसलिए एक परिमेय संख्या है। इसलिए, √5 भी एक परिमेय संख्या होगी। परन्तु हम जानते हैं कि √5 एक अपरिमेय संख्या है।
यह विरोधाभास हमारी त्रुटिपूर्ण कल्पना के कारण हुआ है कि 7√5 एक परिमेय संख्या है। अतः, 7√5 एक अपरिमेय संख्या है।
(iii) 6+ √2
माना कि 6 + √2 एक परिमेय संख्या है।
इसलिए, माना 6+√2 = b≠0.
जहाँ a और b पूर्णांक हैं तथा a और b में, 1 के अतिरिक्त, कोई उभयनिष्ठ गुणनखंड नहीं है।
क्योंकि a और b पूर्णांक हैं, इसलिए "" एक परिमेय संख्या है। इसलिए, √2 भी एक पारमय संख्या होगी। परन्तु हम जानते हैं कि 2 एक अपरिमेय संस्था है।
यह विरोधाभास हमारी त्रुटिपूर्ण कल्पना के कारण हुआ है कि 6 + √2 एक परिमेय संख्या है। अतः, 6+ √2 एक अपरिमेय संख्या है।