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वैदिक गणित ( vedic maths introduction)

वैदिक गणित


प्रीतिं भक्तजनस्य यो जनयते विघ्नं विनिघ्नन्स्मृत ||
स्तं वृन्दारकवृन्दवंदितपदं नत्वा मतंगाननम् ॥ 
पार्टी सद्गुणितस्य वचमि चतुरप्रीतिप्रदां प्रस्फुटां ||
विन्यासाक्षर कोमलामलपदैरललित्यलीलावतीं ॥ 

अर्थ: –

किसी भी ग्रंथ या वेद, काव्य शुरू करने से पहले भगवान को स्मरण किया जाता है। वैदिक गणित को शुरू करने से पहले हम भगवान का स्मरण करेंगे। जो स्मरण करते ही विघ्नों को नाश करके अपने भक्तोंकी प्रीति को उत्पन्न करते है, उन देवताच्यों के समूहों करके अभिवादन किये गये हैं. चरण जिनके ऐसे हस्ति की समान मुखवाले श्रीगणेशजीको नमस्कार करकै मैं भास्कराचार्य अत्यंत स्फुट गणित त्र्यादिशास्त्र के ननेवाले पुरुषोंको प्रसन्नता देनेवाली बहुत अर्थ प्रतिपादक थोडे क्षर और शादपदों के सौंदर्य्य से भरी हुई लीलावती नामवाली पाटीगित को प्रकाशित करता हूं ॥ १ ॥


वराटकानांदशकद्वयंयत्साकाकिणीताश्वपणश्वतस्त्रः ॥ तेषोडशद्रम्मइहावगम्यो द्रम्मैस्तथा षोडशभिश्वनिष्कः ।। २ ।। 

अन्वयः - यत् वराटकानां दशकइयम् सा काकिणी ताः च चतस्त्रः | पाः ते षोडड़ा इम्मः। तथा इह षोडशभिः द्रम्मैः निष्कः अवगम्यः॥२||

अर्थ:- गणित की शुरू करने से पहले रूपये और पैसे के बारे में जानना आवश्यक है। पहले के समय में कौड़ी और सोलह आने होते थे ।

बीस २० वराटक (कौडी) को एक १ काकिणी कहते हैं. तिन्ह चार ४ काकिणी का १ एक पण होता है, तिनहीं १६ सोलहपणों का एक द्रम्म होता है. तथा इस गणितशास्त्रमें १६ सोलह द्रम्म का एक १ निष्क होता है. ॥ २ ॥

२० वराटक = 1 काकिणी

५ काकिणी र्‍ 1 पण

16 पण = 1 द्रम्म

16 द्रम्म = I निष्क



तुल्या यवाभ्यां कथितात्र गुआ वल्लस्त्रिगुओ धरणं च तेऽष्टौ ॥ गद्याणकस्तद्दयमिंद्र तुल्यै १४र्वलैस्तथैको घटकः प्रदिष्टः ॥ ३ ॥

अर्थ :- इस गणितशास्त्र में दो २ यव (जौ) के समान एक १ गुंजा ( रत्ती ) होती है, ३ रत्तीका १ एक वल्ल होता है, ८ आठ वल्लका १ धरण होता है, २ दो धरणका एक गद्याणक कहाता है, १४ चौदह वल्लका १ घटक कहाता है ॥ ३ ॥

2 यव = 1 गुंजा

3 रत्ती = 1 वल्ल

8 वल्ल = 1 धरण

2 धरण = एक गद्याणक

14 वल्ल = 1 घटक


दशार्द्धगुंजं प्रवदंति माषं माषाह्वयैः षोडशभिश्च कर्षम् ॥

कर्षैश्चतुर्भिश्च पलं तुलाज्ञाः कर्षं सुवर्णस्य सुवर्णसंज्ञम् ॥ ४ ॥

अर्थः- तोल के जाननेवाले ५ पांच रत्तीका १ एक भाषा कहते हैं, १६ सोलह माषों का १ कर्ष कहते हैं, ४ कर्ष का १ एक पल कहते हैं और कर्ष भर सुवर्ण को सुवर्ण ही कहते हैं ॥ ४ ॥

5 रत्ती = एक भाषा

16 माषों = 1 कर्ष

4 कर्ष = 1 पल

कर्ष भर = सुवर्ण को सुवर्ण ही कहते हैं।


यवोदरैरंगुलमष्टसंख्यैर्हस्तों ऽगुलैः पङ्गुणितैश्चतुर्भिः ॥हस्तैश्चतुर्भिर्भवतीह दंड: कोशः सहस्रद्वितयेन तेषाम् ॥ ५ ॥ 

अर्थः- इस गणितशास्त्र में पेट मिलाकर आठ ८ यवों के माप का एक अंगुल होता है, २४ चौबीस अंगुलों का १ एक हाथ होता है, ४ हाथ का १ एक दण्ड होता है और २००० दो हजार दण्ड का १ क्रोश होता है ॥ ५ ॥

स्याद्योजन कोशचतुष्टयेन तथा कराणां दशकेन वंशः॥

निवर्तनं विंशतिवंशसंख्यैः क्षेत्रं चतुर्भिच भुजैर्निबद्धम् || ६ ||

अर्थः चार कोशका १योजन होता है और १० दस हाथ का १ एक वंश, ॥ बीस वंश का लंबा चौडा चौकोर क्षेत्र निवर्तन कहाता है ॥ ६ ॥

इस्तोन्मितैर्विस्तृतिदैर्घ्यपिडैर्यद्वादशाखं घनहस्तसंज्ञम् ॥ धान्यादिके यद्वन हस्तमानं शास्त्रोदिता मागधखारिका सा ॥ ७॥

अर्थः-१ एक हाथ चौडा और १ एक ही हाथ लंबा और १ एक ही हाथ गहरा - २ दो जो १२ बारह कोणका गढ़ा है उसको धनहस्त कहते हैं, धान्यादि के तोलन में जो धनहस्त की तोल है उसको शास्त्र में मगध देशकी खारी कहते हैं ॥ ७।।


पादो नग चाणकतुल्य कैर्द्विसप्ततुल्यैः कथितोऽत्र सेरः ॥ 

मणाभिधानं खयुगैश्च सेरैर्धान्यादितौल्येषु तुरुष्कसंज्ञा ॥ १ ॥


अर्थ:- पौनगद्याणक अर्थात ३६ छत्तीस रत्ती (गुखा) का एक १ टंक होता है और ७२ बहत्तर टंकका धान्यादिकी तोलमें १ सेर होता है और ४० चालीस सरका १ मण होता है, यह यवनोंकी करी हुई संज्ञा है ॥ १ ॥ 


द्वयंकेंदुसंख्यैर्घटकैश्च सेरस्तैः पंचभिः स्याइटिका च ताभिः ॥

मणोऽष्टभिस्त्वालमगीरशाहकृतात्र संज्ञा निजराज्यपूर्षु ॥ २ ॥


अर्थः- आलमगीर बादशाहके समय राज्य में प्रचलित तोल में १९२ एकसी बानवे घटक का १ एक सेर और ५ पांच सेरकी १ एक घडी ८ आठ घडी का १ एक मण होता था, यह संज्ञा अब भी मध्यदेश में प्रचलित है ॥ २ ॥


शेषाः कालादिपरिभाषा लोकतः प्रसिद्धा ज्ञेयाः ॥

 अर्थ:- बाकी काल आदिकी परिभाषा लोकसे प्रसिद्ध जानना. जैसे-६० साठ सेकंड का १ मिनट. ६० मिनिटका १ घंटा. २४ चौबीस घंटका एक १ दिन रात. १५ पंद्रह दिनरातका १ एक पक्ष २ पक्षका १ एक महीना. १२ बारह महीनों का एक वर्ष. साठ ६० पलकी १ घडी २॥ ढाई घडीका १ घण्टा १२ बारह घंटेका १ दिन. ७ सात दिनका १ एक सप्ताह, इत्यादि ॥


इति परिभाषा ।

लीलागललुल्ल्लोल कालव्यालविलासिने ॥ गणेशाय नमो नीलकमलामलकान्तये ॥ १

अर्थ:- लीलाकरके गलेमें लटकते हुए चंचल सर्पसे क्रीडा करनेवाले, चिक्कणनील- कांतिवाले गणेशजीको नमस्कार है ॥ १ ॥

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