वराहमिहिर ( Varahmihir )
वराहमिहिर ( Varahmihir ) के बारे में (जन्म, जीवन, कार्य, कृतियाँ)
आचार्य वराहमिहिर का जन्म 499 ई . में अवन्ति ( उज्जैन ) के निकट कापित्थक नामक स्थान पर हुआ था । इनके पिता का नाम आदित्य दास था , जो इनके विद्यागुरु भी थे । इन्होंने अपने प्रसिद्ध कृति बृहज्जातक ( बृ . जा.उप. , अ . - 9 ) के एक पद्म में अपने बारे में जानकारी दी है । विक्रमादित्य ( चन्द्रगुप्त द्वितीय ) के नवरत्नों में से वराहमिहिर एक थे । वराहमिहिर आर्यभट्ट के समकालीन थे ।
वे कुसुमपुर ( पटना ) आर्यभट्ट से मिलने गये थे । इनकी प्रसिद्ध कृतियों में पञ्चसिद्धांतिका , बृहज्जातक , लघुजातक , बृहद्यात्रा , बृहत्संहिता इत्यादि प्रमुख हैं ।
पञ्चसिद्धांतिका में पाँच सिद्धांत हैं - रोलिश , रोमक , वशिष्ठ , सौर तथा पैतामह । इन पाँच सिद्धांतों में सौर सिद्धांत ' सूर्यसिद्धांत ' के नाम से प्रचलित हैं । इसमें 14 अधिक्रम ( अध्याय ) हैं- मध्यम , स्पष्ट , त्रिप्रश्न , चन्द्रग्रहण , सूर्यग्रहण , परिलेख , ग्रहयुति , नक्षत्र ग्रहयुति , उदयास्त , शृङ्गोन्नति पात , भूगोल , ज्योतिषोपनिषद् और मानू त्रिकोणमिति का वर्णन इनकी प्रसिद्ध कृतियों - बृहज्जातक , बृहत्संहिता एवं पञ्चसिद्धांतिका में प्राप्त होता है ।
त्रिकोणमिति की उत्पत्ति सूर्य सिद्धांत से मानी जाती है । जिसमें ज्या ( Sine ) को ज्या ( Cosine ) अनुलोम साईन ( उत्क्रमज्या ) , टैन्जेन्ट ( Tangent ) सेकेन्ट ( Secant ) इत्यादि का वर्णन प्राप्त होता है । गणित - ज्योतिष के साथ ही फलित ज्योतिष की पुस्तक बृहज्जातक प्रसिद्ध है । अलबेरूनी ( Alberuni ) वराहमिहिर के ज्ञान को सत्य पर आश्रित मानता है । बृहत्संहिता 105 अध्यायों में विभक्त है जिसमें 4000 पद्यों का उल्लेख है । प्रस्तुत ग्रंथ में बहुत सी वैज्ञानिकतापूर्ण तथ्यों का विवरण प्राप्त होता है । जैसे अध्याय 21 से 28 में वृष्टि और वायु का विवेचन किया है जो कृषि विज्ञान और वृष्टिविज्ञान के क्षेत्र में आधुनिक काल में भी उपादेय है । 29 से 39 अध्यायों में भूमि सम्बन्धित भूकम्प इत्यादि एवं अन्तरिक्ष में इन्द्रधनुष इत्यादि का वर्णन है । 53 वाँ अध्याय ' वास्तुविद्याध्याय ' के नाम से प्रसिद्ध है । 54 वाँ अध्याय को ' दकार्गलाध्याय ' के नाम से जाना जाता है । दक का अर्थ है जल और अर्गल का अर्थ लकड़ी । इसमें भूमि के अन्तर्गत जल की जानकारी अर्थात् ' जलोत्पत्तिमान ' को बताया गया है । किस स्थान पर खारा जल और किस स्थान पर मीठा जल होगा । इसका विभिन्न प्रकार के वृक्षों के माध्यम से बताया है । कहाँ पर कितने फीट पर पानी मिलेगा इसका भी वर्णन है जो वैज्ञानिक रीति में प्रयोग किया जा सकता है । जल संरक्षण के सिद्धांत भी यहाँ प्राप्त होता है ।
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