पुराणों में गणितीय परम्परा
पुराणों में गणितीय परम्परा:-
पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास हैं । ' पुराण ' की व्युत्पत्ति यास्क के निरूक्त के अनुसार- ' पुरा नवं भवति ' अर्थात् जो प्राचीन होकर भी नया होता है । पुराण का अर्थ प्राचीन आख्यान या पुरातन वर्णन है । पुराणों में वैदिक गाथाओं का व्याख्यान किया गया है । भारतीय संस्कृति का आधारभूत स्तम्भ वेद , पुराण व इतिहास इत्यादि ग्रन्थ हैं । पुराणों के प्रतिपाद्य विषय पाँच प्रकार के माने गये हैं-
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सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च
वंशानुचरितं चैव पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥
(1) सर्ग - संसार की उत्पत्ति का वर्णन ।
(2)प्रतिसर्ग- उत्पत्ति के बाद प्रलय व पुनः सृष्टि ।
(3)वंश - राजाओं एवं ऋषियों के वंशों का वर्णन ।
(4)मन्वन्तर- सृष्टि या ब्रह्माण्ड का काल विभाग प्रत्येक युग में प्रमुख 5 ) घटनाओं का वर्णन ।
(5 ) वंशानुचरित- कलियुग के राजाओं के प्रमुख कार्यों का वर्णन ।
पुराणों की संख्या अठारह ( 18 ) है तथा उपमहापुराणों की संख्या भी अठारह ( 18 ) हैं । पुराणों को विषयवस्तु तथा देवता के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है । ब्रह्मा , विष्णु और शिव से संबद्ध छह - छह पुराण हैं ।
इनका वर्गीकरण त्रिगुणों सत्त्व , रजस् एवं तमस् के आधार पर किया । गया हैं ।
( 1 ) विष्णु से सम्बद्ध ( सात्त्विक ) पुराण - विष्णु , भागवत , नारद , गरूड़ , पद्म और वराह ।
( 2 ) ब्रह्मा से सम्बद्ध ( रजस् ) पुराण - ब्रह्म , ब्रह्माण्ड , ब्रह्मवैवर्त , मार्कण्डेय , भविष्य तथा वामन ।
( 3 ) शिव से सम्बद्ध ( तमस् ) पुराण - शिव , लिंग , स्कंद , अग्नि , मत्स्य और कूर्म ।
पुराणों में वर्णाश्रम , धर्म , कर्मकाण्ड , भूगोल , तीर्थ , व्रत , नदी , देवता , इत्यादि की महत्ता का वर्णन भी प्राप्त होता है । राष्ट्रीय एकता के निर्माण में पुराणों का महत्त्वपूर्ण योगदान है ।
पुराणों का काल लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व माना गया है । पुराणों में उपर्युक्त विषयों के अतिरिक्त गणित एवं विज्ञान से सम्बन्धित तथ्यों का वर्णन प्राप्त होता है ।
ब्रह्माण्ड पुराण में भी संख्या लेखन पद्धति का वर्णन द्रष्टव्य-
एकं दशं शतं चैव सहस्रमयुतं तथा ।
लक्षं च नियुतं चैव कोटीर्बुदमेव च ।
वृन्द खर्वो निखर्वश्च शंख पद्मो च सागरः ।
अन्त्यं मध्यं पराद्धं च दश वृद्धया यथा क्रमम् ।
एक (१),
दश (१०),
शत (१००),
सहस्र (१०००),
अयुत (१०,०००),
लक्ष (१००,०००),
नियुत (१००००००),
कोटि (१०००००००),
अर्बुद (१००००००००),
अब्ज (१०००००००००),
खर्व (१००००००००००),
निखर्व (१०००००००००००),
महापद्म (१००००००००००००),
शङ्कु (१०००००००००००००),
जलधि (१००००००००००००००),
अन्त्य (१०००००००००००००००),
मध्य (१००००००००००००००००),
परार्द्ध (१०००००००००००००००००)।
श्रीमद्भागवत -महापुराण के दशम स्कन्ध के अध्याय 61 के श्लोक संख्या 29 में रुक्मणी व बलरामजी के बीच चौसर खेलने के क्रम में गणितीय संख्याओं का वर्णन है -
शतं सहस्रमयुतं रामस्तत्राददे पणम् ।
तं तु रुक्म्यजयत्तत्र कलिंग : प्राहसद् बलम् ।
दन्तान् सन्दर्शयन्नुच्चैर्नामृष्यत्तद्धलायुधः ।।
श्रीमद्भा.पु . ( 10.61.29 )
चौसर खेलने के क्रम में बलरामजी ने पहले सौ , फिर हजार और इसके बाद दस हजार मुहरों का दाँव लगाया । पुराण में भी पाया जाता है । ( श्रीमद्भा.पु . 10.61.30-31 ) )
लक्ष ( लाख ) और न्यर्बुद ( 10 करोड़ ) का उल्लेख श्रीमद्भागवत
श्रीमद्भागवत पुराण के दशम स्कन्ध में संख्या का उल्लेख स्पष्टतः हुआ है
दशधेनुसहस्राणि पारिबर्हमदाद् विभुः ।
युवतीनां त्रिसाहस्रं निष्कग्रीवसुवाससाम् ।। 50 || न
नवनागसहस्राणिनागाच्छतगुणान् रथान् |
रथाच्छतगुणानश्वानश्वाच्छतगुणान् नरान् ॥ 51 ॥
इसमें बताया है कि किसी राजा ने दहेज में दस हजार गौएँ , तीन हजार नवयुवती दासियाँ , नौ हजार हाथी , नौ लाख रथ , नौ करोड़ घोडे और नौ अरब सेवक दिये ।। ( श्रीमद्भा.पु . 10.59.50-51 )
एकत : श्यामकर्णानां हयानां चन्द्रवर्चसाम् ।
सहस्रं दीयतां शुल्कं कन्यायाः कुशिका वयम् ॥
( श्रीमद्भा.पु .9.15.6 )
श्रीमद्भागवतपुराण के नवम् स्कन्ध में सहस्र ( एक हजार ) संख्या का उल्लेख आया है ।
मार्कण्डेयपुराण में वर्णित दुर्गाशप्तशती के द्वितीय अध्याय में देवी भगवती दुर्गा व महिषासुर के मध्य युद्ध वर्णन में गणितीय संख्याओं का वर्णन हुआ-
दिशो भुजसहस्रेण समन्ताद् व्याप्य संस्थिताम् ।
ततः प्रववृते युद्धं तथा देव्या सुरद्विषाम् ॥
शस्त्रास्त्रैर्बहुधा मुक्तैरादीपितदिगन्तरम् ।
महिषासुरसेनानीश्चिक्षुराख्यो महासुरः ।।
युयुधे चामरश्चान्यैश्चतुरङ्गबलान्वितः । स्थानामयुतैः षड्मिरूदग्राख्यो महासुरः ।।
अयुध्यतायुतानां च सहस्रेण महाहनुः ।
पञ्चाशद्भिश्च नियुतैरसिलोमा महासुरः ।।
अयुतानां शतैः षड्भिर्वाष्कलो ययुधे रणे । गजवाजिसहस्रौधैरनेकैः परिवारितः ।।
वृतो स्थानां कोट्या च युद्धे तस्मिन्नयुध्यत ।
बिडालाख्योऽयुतानां च पञ्चाशद्भिरथायुतैः ।।
युयुधे संयुगे तत्र स्थानां परिवारितः । अन्ये च तत्रायुतशो रथनागहयैर्वृताः ।। ( a ) ( दुर्गाशप्तशती 2.39-45 )
युद्ध वर्णन में गणितीय संख्याओं का वर्णन इस प्रकार हुआ है- देवी अपनी हजारों भुजाओं से सम्पूर्ण दिशाओं को आच्छादित करके खड़ी थीं । साठ हजार रथियों के साथ एवं एक करोड़ रथियों को साथ लेकर दैत्य युद्ध करने लगा । पाँच करोड़ रथी सैनिकों सहित , साठ लाख रथियों से घिरा हुआ परिवारित नामक राक्षस एक करोड़ रथियों की सेना लेकर युद्ध करने लगा । बिडाल दैत्य पाँच अरब रथियों से देवी के साथ युद्ध करने लगा । ब्रह्माण्ड पुराण ( 65.103-104 ) में गणितीय संख्याओं ( 88000 , 10000 इत्यादि ) का वर्णन प्राप्त होता है ।
अष्यशीतिसहस्राणि प्रोक्तानि गृहमेधिनाम् ।
अर्यम्णो दक्षिणा ये तु पितृयानं समाश्रिताः ।।
गृहमेधिनां तु संख्येयाः श्मशानान्याश्रयन्ति ये अष्टाशीतिसहस्राणि निहिता ह्युत्तरायणे । ये श्रूयन्ते दिवं प्राप्ता ऋषय उध्वरितसः । ब्रह्म . पु . ( 65.103-104 )
यहाँ देखें :-
महाकवि भासकृत प्रतिमानाटकम् का सामान्य परिचय
ब्रह्मगुप्त का जीवन परिचय और कृत्तियाँ / रचनाएं
Varahmihir(वराहमिहिर जीवन परिचय और कृतियाँ/रचनाएँ)
पुराणों में गणितीय परम्परा , संस्कृत और वेद