ब्रह्मगुप्त ( Brahmagupta )
ब्रह्मगुप्त ( Brahmagupta ) :-
ब्रह्मगुप्त एक विश्वविख्यात गणितज्ञ थे । इनका जन्म राजस्थान राज्य में आबू पर्वत तथा लूणी नदी के बीच स्थित भीनमाल नामक गांव में ईस्वी सन् 598 में हुआ था । इनके पिता का नाम जिष्णु था , इन्होंने प्राचीन ' ब्रह्मपितामहसिद्धांत ' के आधार पर ' ब्राह्मस्फुटसिद्धांत ' तथा ' खण्डखाद्यक ' नामक ग्रन्थ लिखा ।
ब्रह्मगुप्त के शिक्षा के विषय में अब तक कोई भी विशेष मत प्रस्तुत नहीं है, हालांकि ब्रह्मगुप्त के रचनाओं और उनके खोज की वजह से अंदाजा लगाया जाता है कि ब्रह्मपुत्र एक ग्रेजुएट व्यक्ति रहे होंगे।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ' ध्यानग्रहोपदेश ' नाम से भी प्राप्त होता है । ' ब्राह्मस्फुटसिद्धांत ' नामक अपने ग्रन्थ की रचना ब्रह्मगुप्त ने मात्र 30 वर्ष की अल्पायु में किया । इस ग्रन्थ में कुल 21 अध्याय हैं । संपूर्ण ग्रन्थ के दो अध्यायों में गणित विषयों तथा शेष के 19 अध्यायों में ज्योतिष सम्बन्धी विषयों का सन्निवेश किया है । इस ग्रन्थ के 12 वें अध्याय की प्रसिद्धि ' गणिताध्याय ' के नाम से विख्यात है ।
इस प्रसिद्ध ग्रन्थ का अनुवाद T. Olebrooke ने अंग्रेजी में किया जो 1927 में लंदन से छपा । ब्रह्मगुप्त ने अपने ग्रन्थ में गणित सम्बन्धी प्रमुख नियमों यथा जोड़ना , घटाना , गुणा , भाग , वर्ग तथा वर्गमूल , घन तथा घनमूल , भिन्नों को जोड़ना , घटाना आदि , त्रैराशिक नियम , व्यस्त त्रैराशिक , भाण्ड , प्रतिभाण्ड , मिश्रक व्यवहार ( त्रिभुज , चतुर्भुज आदि क्षेत्रों के क्षेत्रफलों को जानने की रीति चिति व्यवहार ( ढालू खाई का घनफल जानने की रीति ) खात व्यवहार ( खाई का क्षेत्रफल निकालना ) क्राकचिक व्यवहार ( आरा चलाने वालों का उपयोगी गणित ) राशि व्यवहार ( अन्न के ढेर के परिमाण जानने की विधि , छाया व्यवहार ( दीप स्तम्भ तथा उसकी छाया से सम्बन्धित प्रश्न ) इत्यादि का वर्णन किया है । आचार्य ब्रह्मगुप्त ने इसके अतिरिक्त ' गणक ' का वर्णन किया है गणित की 20 क्रियाओं तथा 8 व्यवहारों को गणक कहा है ।
20 परिकर्म - सङ्कलित , व्यवकलित , प्रत्युत्पन्न , भागहार वर्ग , वर्गमूल , घन , घनमूल , भागजाति , प्रभागजाति , भागानुबन्ध जाति , भागापवाह जाति , भागमाता जाति त्रैराशिक , व्यस्त त्रैराशिक , पञ्चराशिक , सप्तराशिक , नवराशिक , एकादशराशिक तथा भाण्डप्रतिभाण्ड ।
व्यवहार - मिश्रक , श्रेणी , क्षेत्र , खात , चिति , क्राकचिक राशिक और छाया ' ब्राह्मस्फुटसिद्धांत ' के 18 वें अध्याय को ' कुट्टकाध्याय के नाम से जाना जाता है । इसमें 103 श्लोक हैं । कुट्टक समीकरण ( Indeterminate equation ) बीजगणित का ही अंग है ।
ब्रह्मगुप्त ने कुट्टक निकालने की नेअनेक विधियों का वर्णन किया है ।
ब्रह्मगुप्त ने रैखिक समीकरण का सिद्धांत दिया :-
अव्यक्तान्तरभक्तं व्यस्तं रूपान्तरं समेऽव्यक्तः ।
वर्गांव्यक्ता शोध्याः यस्मात् रूपाणि तदधस्तात् ॥
( ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त , 18.43 )
वर्गचतुर्गुणितानां रूपाणां मध्यवर्गसहितानाम् ।
मूलं मध्येनोनं वर्गद्विगुणोद्धृतं मध्यः ।।
( ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त , 18,44 )
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