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कालिदास की प्रमुख रचनाएँ/महाकवि कालिदास की शैली,Mahakavi Kalidas , कालिदास कवि की कृतियां

कालिदास की प्रमुख रचनाएँ संस्कृत में और शैली

कालिदास 

कविकुल गुरु महाकवि कालिदास ने तीन नाटकों अभिज्ञानशाकुन्तल , विक्रमोवंशोयम् तथा मालविकाग्निमित्रम् के अतिरिक्त , रघुवंश , कुमारसम्भव , ऋतुसंहार और मेघदूत की रचना की है उसके समय और व्यक्तित्व के विषय में निश्चित रूप से कुछ भी पता नहीं है फिर भी कालिदास ने अपनी कृतियों में अपने समय के सारे भारतवर्ष का और इसके विभागों का नामोल्लेख किया है । 

उनका महाकाव्य रघुवंश अठारह सर्गों में लिखा हुआ महाकाव्य है । इसमें रघुकुल का वर्णन है । कथा और काव्यों में कालिदास ऐसी परमकोटि को प्राप्त हुए हैं जो उनसे पहले या बाद में और कोई प्राप्त नहीं कर सका है । रघुवंश का विषय विविध और व्यापक है जिससे कालिदास को अपनी कल्पना शक्ति प्रदर्शन करने का पूर्ण सुअवसर प्राप्त हुआ है । रघुवंश सूत्रबद्ध काव्य की अपेक्षा चित्रों की एक तेजोराशि है । 

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Mahakavi kalidas ( image source-Wikipedia)

कालिदास सुघटित वर्णनों के लिए आख्यान विषयक अभिरुचि का हनन कभी नहीं करते हैं । हृदयंगमता और अभिरुचि के लिए उनकी अपनी निश्चितता है । सचमुच कालिदास में भी अन्य संस्कृत कवियों की तरह अपने पात्रों की ' सर्वथाभद्र ' पात्रों के रूप में चित्रण करने की प्रवृत्ति विद्यमान है । फिर भी यह मानना होगा कि इन आदर्श पात्रों का अपना व्यक्तित्व है रघुवंश में कई विषय अद्भुत कवि कल्पनाश्रित रीति और संगीत की शक्ति से आपस में ग्रथित हैं यह कहना अत्युक्ति नहीं होगा कि कुछ अपवादों को छोड़कर कालिदास को शब्दाडम्बर के कृत्रिम प्रयोग में अभिरुचि नहीं है । उसकी कृतियाँ मानव भावनाओं से परिपूर्ण हैं । 

कालिदास को एक और कृति कुमारसम्भव महाकाव्य है जिसके आठ सर्ग हैं । रचना सम्पूर्ण नहीं है जिसका कोई ज्ञात कारण नहीं है । इसके आगे के सर्ग भी मिलते हैं परन्तु वे किसी अज्ञात के द्वारा लिखे गये समझ जाते हैं । काव्य मुख्य कथा से आरम्भ होता है । प्रथम सर्ग में हिमालय का वर्णन बहुत ही रमणीय है । 

यह काव्य प्रचुर वैचित्र्य कल्पना की उज्ज्वलता तथा भावों की अभिव्यक्ति के कारण आधुनिक अभिरुचि के अनुकूल है । कुमारसम्भव में एक और वसन्त ऋतु की रमणीयता तथा सभोगश्रृंगार का हर्षोल्लास है तो दूसरी ओर प्रियतमा की मृत्यु से छाया हुआ घोर विषाद ।

आनन्दवर्धनाचार्य का कथन है कि कई आलोचकों ने देवताओं के रतिभाव के वर्णनों की आलोचना की है । यह विषय आधुनिक अभिरुचि के अनुकूल प्रतीत नहीं होता है क्योंकि मानवीय भावनाओं को आलौकिक रूप दिया गया है । इस कृति के आदर्श पर वाल्मीकि का प्रभाव पड़ा है । तारकासुर का वर्णन रावण के वर्णन से प्रभावित है । 

अधूरा काव्य:—

यह काव्य अधूरा क्यों रहा यह समस्या बहुत ही उलझी हुई है । हो सकता है कि यह हस्तलिखित प्रति में नष्ट हो गया हो या सम्भव है कि कवि ने इस काव्य को अपने समकालीन पण्डितों को आलोचना के कारण अधूरा ही छोड़ दिया हो । चूँकि रघुवंश बाद की रचना है , यह कहना युक्तिसंगत नहीं होगा कि कवि की मृत्यु के कारण यह काव्य पूरा नहीं हो सका , निःसंदेह कवि द्वितीय भाग पूरा करने की प्रतिज्ञा पहले भाग में कर चुके हैं ।

 महाकवि कालिदास के विचार 

महाकवि कालिदास रचनाओं में तत्कालीन वेदादिशास्त्र प्रतिपादित धर्म के सिद्धान्त मिलते हैं वह चार वर्णों और चार आश्रमों के पक्षपाती हैं । उन्होंने आदर्श ब्राह्मण और आदर्श क्षत्रिय का वर्णन किया है । जीवन के चार पुरुषार्थो धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष में उनका पूर्ण विश्वास है । यद्यपि कालिदास ने प्रेम संबंधी चित्रों को चित्रित किया है परन्तु वे इंद्रियपरक नहीं है शास्त्रों के अनुसार पुत्र प्राप्ति आवश्यक है । कालिदास ने रघुवंश के आरम्भ में स्पष्ट कहा है रघुवंशी पुत्र प्राप्ति के लिए गृहस्थ जीवन को स्वीकार करते थे । 

ऐसा ज्ञात होता है कि कालिदास ब्रह्मा , विष्णु और शिव तीनों देवों की पारमार्थिक एकता का तथा जगत् - प्रकृति के बारे में सांख्य और योगदर्शन के सिद्धान्तों । मानने वाले हैं । उन्होंने कई बार तीन गुणों का उल्लेख किया है तथा कुछ योगासनों का भी निरूपण किया है । प्रो कीथ का कथन है कि कालिदास में मानव हृदय के द्वंद्वों का कोई समाधान सम्भव नहीं है । उनके अनुसार कालिदास ब्राह्मण धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं । इस कारण से कई पाश्चात्य विद्वान् कालिदास की रचनाओं की आलोचना करते हैं किन्तु भारतीय सहृदय को कालिदास की कृतियां अत्यधिक प्रभावित करती जिनमें कर्म तथा पुनर्जन्म सिद्धान्तों में पूर्ण विश्वास प्रकट किया गया है । 

महाकवि कालिदास की शैली 

कविकुल गुरु कालिदास संस्कृत साहित्य के एक स्वर से सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं । निर्दोषता और लालित्य में वे अश्वघोष से भी उत्कृष्ट हैं और उत्तरकालीन कवियों की अपरिमितता से मुक्त हैं । दण्डी का कथन है कि " कालिदास ने वैदर्भी रीति को अपनाया है तथा ध्वनि साम्य का ध्यान रखते हुए शब्दों का प्रयोग साधारण अर्थ में किया है । " कालिदास सर्वसाधारणजनों के कवि हैं । यद्यपि उन्होंने भूपालों और देवों के बारे में लिखा है फिर भी जनसाधारण के लिए भी लिखा है । राजाओं का चित्रण शूरवीरों के रूप में किया गया है । उनका जीवन जन सामान्य के लिए एक आदर्श है तथा वे देश की समृद्धि के लिए काम करते हैं । पुरोहितों का चित्रण भी महत्त्वास्पद है । वे अपने नृपों और उनके अनुयायियों को हितावह उपदेश देते हैं । देवों का वर्णन करते समय कालिदास ने उनको मानवीय रंग से रंजित किया है । 

कालिदास के लिए संसार पाप और व्यथा का स्थान नहीं है यहाँ सौन्दर्य तथा हर्ष विराजमान है । उन्होंने प्रकृति के परम आनन्ददायी रूप का वर्णन किया है । सौन्दर्य की उनकी अपनी कल्पनाएं हैं । कालिदास के अनुसार सौन्दर्य वर्णनातीत है , केवल हृदय से ही उसका अनुभव हो सकता है । 

कालिदास को प्रशंसा पूर्वीय तथा पश्चिमीय विद्वानों ने समान रूप से की है । प्राकृतिक सौन्दर्य का मानवीय भावनाओं के साथ एकीकरण करने के लिए कालिदास प्रशंसा के पात्र हैं । उसने ऐसे अनुपम काव्य का निर्माण किया है जिसमें मानव - हितवाद , अद्भुत कल्पनावाद तथा प्रकृति प्रेम का चित्रण है । काव्य के प्रधान अंग शब्द रचना कल्पना और ध्वनि आदि सभी उनकी रचनाओं में रमणीय रूप से विद्यमान है । कालिदास में श्रुतिकटु तथा असंस्कृत कुछ भी नहीं पाया जाता । उनके काव्य की एक और विशेषता यह है कि वे वाच्य की अपेक्षा ध्वनि का अधिक प्रयोग करते है । कुमारसम्भव के निम्नलिखित से उनकी व्यंजनाशक्ति का पता चलता है । जिसमें पार्वती संभ्रान्त स्थिति में दिखाई गई है–

एवं वादिनी देवर्षी पाश्र्वें पितुरधोमुखी । 

लीलाकमलपत्राणि गणयामास पावंती ॥ ( कुमारसंभव 6-84 ) 

कई आलोचकों के अनुसार निम्नलिखित पद्य में ' राजा ' शब्द व्यंग्यार्थ से परिपूर्ण है –

वाच्यस्त्वया मद्वचनात्स राजा वही विशुद्वामपि यत्समक्षम 

मां लोकवादश्रवणादहासीः श्रुतस्य तत्किं सदृशं कुलस्य ।। 

कालिदास ने उपमाओं की विषय सामग्री उपयुक्त विषयानुकूल वातावरण से ही ली है । अतएव वे उपमा सम्राट कहाए तथा परम्परा उपमाओं के लिए कालिदास का ही नैपुण्य स्वीकारती है उपमा कालिदासस्य । 

उनको उपमाएं असाधारण एवं मनोरम होती है । उनमें लिंग साम्य भावसाम्य और रमणीयता का अद्भुत समन्वय है । वे सर्वांगीण और व्यापक हैं । उनमें काव्य शास्त्र , दर्शन , व्याकरण और वेदों प्राप्त भावों और सिद्धान्तों का सुन्दर प्रतिपादन है 

निम्नलिखित पद्म में कालिदास की उपमा का सौन्दर्य अपूर्व है जिसके आधार पर उनकी ' दीपशिखा ' उपाधि दी गई थी–

 संचारिणी दीपशिखेव रात्रौ यं यं व्यतीयाय पतिम्बरा सा , नरेन्द्रमार्गाद्ध इव प्रपेदे विषर्णभावं स स भूमिपालः । 

कालिदास अपनी उपमाओं के लिए ही नहीं अर्थान्तरन्यास के लिए भी प्रसिद्ध हैं । कहा भी जाता है अर्थान्तरस्य विन्यासे कालिदासो विशिष्यते । " इनका विषय वैविध्य , वैदुष्य , कलात्मक प्रवीणता और मनोज्ञता दृष्टव्य कभी - कभी उनके रूपक निःसंदेह व्याकरण आदि को दृष्टि से असहज रहते हैं । कालिदास न केवल कल्पना में अपितु पर्वतों , नदियों तथा मानवविचारों के सुस्पष्ट चित्रण में भी उत्कृष्ट हैं । उनमें वैचित्र्य और वैविध्य दोनों हैं । वे अत्यन्त सजीव और स्वाभाविक हैं । 

कालिदास छन्दों के प्रयोग में बड़े निपुण हैं और नाना छन्दों के प्रयोग में पूर्ण कौशरल दिखाते हैं । लौकिक संस्कृत के प्राय : सभी आवश्यक छन्दों का उन्होंने प्रयोग किया है । उन्हें छोटे छन्द अधिक प्रिय हैं , उनमें भी उपजाति अनुष्टुप् सर्वाधिक प्रिय छन्द हैं , बड़े छन्दों का प्रायः सर्गान्त में प्रयोग किया है । उनके समान के कवि के आज तक प्राप्त न होने से अनामिका अनामिका ही रह गयी " प्रद्यापि तत्तुल्यक्वेरभावादनामिका सार्थवती बभूव । " 

यहाँ देखें :-

महाकवि भासकृत प्रतिमानाटकम् का सामान्य परिचय

भास की नाट्य - शैली 

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